Sunday 20 April 2014

सोचता हूँ मैंने खुद को और ज़िन्दगी को क्या दिया

ज़िन्दगी ने  मूझे इतना व्यस्त कर दिया
मानो मुझे खुद से ही दूर कर दिया

सुख चैन पाने को मैंने क्या क्या नहीं किया
पीछे भाग भाग इनके सारा समय खर्च कर दिया

खुद की चाहतो को  कभी वक़्त न दिया
दुनिया दारी निभाते निभाते ही सारा वक़्त निकल गया

क्या कभी मैंने खुद को मुस्कुराने का कारण दिया
या खुद से कभी हसने का वादा किया

आज ये आलम है देखो समक्ष मेरे आ गया
जहाँ एक छोटी सी कविता लिखने को भी मैं तरस गया

आइना भी देख मुझे नजरे चुराने लग गया
दिखा रहा क्या पाया मैंने और क्या चला गया

ज़िन्दगी ने कभी ख़ुशी दी और कभी गम दिया
सोचता हूँ मैंने खुद को और ज़िन्दगी को क्या दिया


-Poem by Peeyush

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